मेरी कहानी
कब तक तक खामोश रहा मैं
अब जरा कहने दो मुझे कहानी मेरी ,
जरा सजाना महफिलें खामोशी में
आज न थमेगी जुबानी मेरी ।
जिक्र करेंगे उसका आज
जो वजह बताए बिना चली गयी ,
जिक्र होगा उसका भी आज
जो इश्क़ निभाये बिना चली गयी ;
कुछ किस्से होंगे उनके भी
जिनको मैंने छोड़ा है,
कुछ वादे ऐसे भी होंगे
जिनको मैंने तोड़ा है ;
एक पन्ने पर रख देंगे आज
मोहब्बत की आखिरी निशानी मेरी,
कब तक खामोश रहा मैं
अब जरा कहने दो मुझे कहानी मेरी ।
कुछ चर्चा कुछ उन ख्वाबों का होगा
जो अभी हासिल न हुए,
एक अफसाना उन अरमानो का होगा
जो कभी काबिल न हुए ;
जिक्र जरा सा होगा आज
टूटे बिखरे कुछ रिश्तों का
थोड़ा हिसाब कर लेंगे आज
मेरे गमों की किस्तों का ;
जरा वक़्त निकाल कर सुनले जमाने
आखिरी आज ये जुबानी मेरी,
आखिर कब तक खामोश रहा मैं
आज कहने दो मुझे कहानी मेरी ।।
– गुलेश सुथार