नील आर्मस्ट्रांग को भी चाँद पर
अगर आदत कुछ ऐसी लगी होती
तो अखबार के किसी पन्ने पर , उनकी भी सेल्फी छपी होती ;
एडमंड हिलेरी भी अगर
एवरेस्ट तक का सफर कुछ सेल्फियों में पिरो जाते
तो वो भी शायद ओप्पो, वीवो के ब्रांड अंबेसडर हो जाते ।
रामायण का किस्सा भी
बिना राम सेतु के निपटाया जा सकता था,
लंका युद्ध का मुद्दा भी
राम-रावण की सेल्फी से सुलझाया जा सकता था;
महाभारत के युद्ध से बचकर
ये धरा और महान हो सकती थी
कौरवों-पांडवों की सांझी सेल्फी भी
सिंहासन का समाधान हो सकती थी ।
गांधीजी ने लाठी की जगह अगर सेल्फीस्टिक उठाई होती
शायद उनकी तस्वीरें इंस्टाग्राम पर काफी ऊपर आई होती
जिन्ना यूं पाकिस्तान शायद कभी बनाते ना
अगर नेहरू उनकी सेल्फी की मांग ठुकराते ना
फूट डालो और राज करो के नारे बदले
अगर सेल्फी का वहम दिया होता
तो शायद अबतक हिंदुस्तान पर गोरों ने राज किया होता ।
हीर ने रांझा को शायद
इतना भी ना प्यार किया होता
अगर किसी ने उनकी सांझी सेल्फी पर ऐतराज़ किया होता
मजनूं भी इश्क़ में पागल यूं मारा मारा फिरता ना
अगर लैला-मजनूं को सेल्फी का एक भी मौका मिलता ना ।
देहात की उन तस्वीरों के साथ
मुंशी प्रेमचंद खुद को भी सेल्फी में दिखला सकते थे
मुशायरों की सेल्फी पर शायद
मिर्जा गालिब ढेरो लाइक पा सकते थे ।
पूरा विश्व शायद , यूं ना कभी लड़ा होता
यहूदियों को सेल्फी से बाहर करने की ज़िद पर
अगर हिटलर ना कभी अड़ा होता ;
हिरोशिमा नागाशाकी को भी
परमाणु हमलों से बचाया जा सकता था
विश्व युद्ध जैसा मसला भी शायद सेल्फी से सुलझाया जा सकता था ।
– गुलेश सुथार