यूँ तो बहुत कुछ लिखा गया है माँ एंव माटी के बारे में मगर इनकी स्तुति में जितना लिखा जाए उतना ही कम है ।
ये वो विषय है जिनके साथ हर कोई भावनात्मक तरीके से जुड़ाव महसूस कर सकता है ।
आप सबके सम्मुख प्रस्तुत है मेरी कलम से लिखी हुई कुछ नज़्म माँ एंव माटी के नाम
शहरी बुतों से तंग आ गए हो
तो गांव लौट जाना
सुना है वहां अब भी इंसान बसते है ।१।
मोहब्बत के नाम पर आडम्बरों से बहुत ऊबा बैठा हूँ
मैं एक मुद्दत से माँ और माटी के प्रेम में डूबा बैठा हूँ ।२।
खुदा की बन्दगी छोड़ दी मैंने , माँ मैं तेरी नज्म गाता हूँ
मुझे दोजख का गम नही, तेरी रुसवाई से खौफ खाता हूं ।३।
एक हाथ में खुशियां, एक हाथ में सपने
सर पर उम्मीदों का बोझ लेकर
शहरी धुएं के बादलों से दूर
संकरी पगडंडियों के रास्ते
आओ अब गांव लौट चलें ।४।
उसकी सरहदें बस मुझ तक है
मुझसे ही उसका सारा जहां है ,
रोज़ दुनिया से लड़ती है मेरे लिए
माँ मेरे लिए किसी फौज़ी से कम कहां हैं ।५।
मां ने कामयाबियों के शिखर पर कुछ यूं चढ़ा दिया ,
संस्कारों की किताब का मुझे हर पन्ना पढा दिया ।६।
शहर के करीब है मगर दूरियां बहुत है
मेरे गाँव के लोगों की मज़बूरियां बहुत है ।७।
– गुलेश सुथार