परायी ग़ज़ल

मैं तुम्हारे बारे में लिखता जरूर

मगर तुम मेरी ग़ज़ल नही हो

मैं लिखता तुम्हारे हुस्न को

शायद लिखता तुम्हारी हर अदा

तुम्हारी जुल्फों की ख़ुश्बू भी लिखता

लिखता नशा तुम्हारी नशीली आंखों का

मैं तुम्हारे गुलाबी होठों के बारे में लिखता जरूर

मगर तुम मेरी गज़ल नही हो ।

मैं लिखता तुम्हारी हर एक नादानी को

लिखता तुम्हारी छोटी बड़ी सब शैतानी को

तुम्हारे गुस्सा होने की हर एक वजह लिखता

लिखता तुम्हारे मुस्कुराने के बहानों को

मैं तुम्हारे चेहरे के हर मौसम को लिखता ज़रूर

मगर तुम मेरी ग़ज़ल नही हो ।

मैं तुम्हारे रूठकर मान जाने को लिखता

मैं लिखता हमारे बीच हुए हर मनमुटाव को

लिखता तुम्हारे साथ गुजरा मेरा हर लम्हा 

मेरी बेबसी में हुआ तुम्हारा हर जिक्र लिखता

मैं तुम संग देखा मेरा हर ख्वाब लिखता ज़रूर

मगर अफसोस तुम मेरी ग़ज़ल नहीं हो ।।

                           –गुलेश सुथार